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कविता संग्रह >> रैदास बानी

रैदास बानी

शुकदेव सिंह

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :303
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13608
आईएसबीएन :9788183614580

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‘रैदास-बानी’ का सम्पादन, मध्यकालीन साहित्य की ग्रंथ-विधा की सारी जटिलताओं को समेटते हुए पहली बार किया गया है

निर्गुण साहित्य को ग्रंथ करने के लिए ग्रंथ जैसे-साखी, सबद, रमैनी या रमैनी, सबदी, साखी; अंगु, उन्सठ से चौरासी तक जैसे गुरुदेव को अंग; राग जैसे सोरठ, आसावरी प्राय सोलह, महला, घरु, बीजक, बानी, गुरु ग्रंथ सर्वंगी, गुणगंजनामा, पद संग्रह की विधाओं को समझते हुए जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, आमेर, उदयपुर, नागरी प्रचारिणी सभा, साहित्य सम्मेलन, इंडिया आफिस लाइब्रेरी, तमाम जगह के हस्तलेखों और उनके फोटो-चित्रों की सहायता ली गई है। इस क्रम में प्रो. डेविड लोरन्जन, पीटर फ्राइलैंडर, जोजेफ सोलर से सहयोग लिया गया है। सबसे सहमति/असहमति दोनों, लेकिन निष्कर्ष केवल अपने। रैदास, दादू ग्रंथों, सर्वंगी पोथियों, बानी, पंचबानी संग्रहों गुरुगं्रथ यहाँ तक कि सूर पद संग्रह में सात पदों के साथ उपस्थित हैं। कबीर के बराबर। इस सामग्री के साथ रैदासी डेरों में भी उनसे जुड़े पद मिल जाते हैं। पदों की संख्या में हेर-फेर, पंक्तियों को बढ़ाना-घटाना-हटाना लेकिन यह अज्ञान और आलस्य के कारण नहीं, सिद्धान्त और सम्प्रदाय के हठ और मठ के कारण है। इसे समझने के लिए भी एक परम्परा है जो भक्तमालों, जनमसाख, परिचयी गोष्ठी, तिलक, बोध, सागर, नामक सैकड़ों पोथियों में प्राप्त है। इस पुस्तक में इस पूरी परम्परा का समझ-बूझकर प्रयोग किया गया है। साखी, सबदी, हरिजस, आरती जैसे रूपों के पीछे दर्शन क्या है ? किसी राग में किसी पद के होने का मतलब क्या है ? इस विज्ञान को समझे बिना यह सम्पादन सम्भव नहीं था। भक्तमालों और नागरी दासों के पद प्रसंगों में यह सामग्री मिलती है। इन सबकी छान करते हुए इस पुस्तक की बीन तय की गयी है।

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